जादुई तालाब का रहस्य
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किसी गाँव के पास एक घना जंगल था, और उस जंगल के बीचों-बीच एक छोटा सा तालाब था। गाँव वाले कहते थे कि वो तालाब जादुई है, लेकिन कोई हिम्मत नहीं करता था वहाँ जाने की, क्योंकि जो भी वहाँ गया, वो कभी लौटा नहीं।
एक दिन, गाँव का नन्हा सूरज, जो अपनी जिज्ञासा के लिए मशहूर था, ने सोचा, "मुझे उस तालाब का रहस्य जानना ही होगा!" वो चुपके से जंगल में निकल पड़ा। रास्ते में उसे एक बूढ़ा कौआ मिला, जिसके पंख चमकते थे जैसे तारे। कौआ बोला, "सूरज, तालाब तक जाना चाहता है? लेकिन सावधान! तालाब में एक जादुई मछली है, जो तीन इच्छाएँ पूरी करती है, पर उसका एक नियम है—लालच मत करना!"
सूरज ने कौए की बात सुनी और तालाब के किनारे पहुँच गया। तालाब का पानी इतना साफ था कि उसमें सूरज का चेहरा सितारों की तरह चमक रहा था। अचानक, पानी में से एक सुनहरी मछली उछली और बोली, "बोल, इंसान! तू क्या चाहता है? मैं तेरी तीन इच्छाएँ पूरी करूँगी, लेकिन अगर तूने चौथी इच्छा माँगी, तो तू हमेशा के लिए इस तालाब में कैद हो जाएगा!"
सूरज ने सोचा और अपनी पहली इच्छा माँगी, "मेरे गाँव में कभी सूखा न पड़े, हमेशा फसलें लहलहाएँ!" मछली ने पूँछ हिलाई, और तालाब का पानी चमक उठा। सूरज को पता था कि गाँव अब हरा-भरा रहेगा।
दूसरी इच्छा में उसने कहा, "मेरे गाँव के सभी बच्चे पढ़-लिखकर बड़े सपने देखें!" मछली ने फिर पानी में गोता लगाया, और सूरज को लगा जैसे किताबों की खुशबू हवा में फैल गई।
तीसरी इच्छा के लिए सूरज रुका। उसने सोचा, "मेरे पास सब कुछ है, लेकिन..." फिर उसने कहा, "मछली, मैं चाहता हूँ कि तू आज़ाद हो! तुझे ये तालाब छोड़कर समुद्र में तैरना चाहिए!" मछली हैरान हुई और बोली, "तूने मेरे लिए इच्छा माँगी? ऐसा पहले कभी नहीं हुआ!" उसने अपनी पूँछ से एक चमकदार लहर बनाई, और तालाब गायब हो गया। मछली समुद्र में चली गई, और सूरज के हाथ में एक छोटा सा जादुई मोती आ गया।
वापस गाँव लौटकर सूरज ने देखा कि गाँव हरा-भरा है, बच्चे स्कूल जा रहे हैं, और वो मोती रात में चमककर जंगल को रोशन करता था। गाँव वालों ने सूरज को अपना हीरो माना, और वो मोती आज भी गाँव की कहानियों में जादू बिखेरता है।
नैतिक: सच्चा जादू लालच में नहीं, दूसरों के लिए अच्छा सोचने में है।
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जादुई कुल्हाड़ी और ईमानदार लकड़हारा
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किसी गाँव में एक लकड़हारा रहता था, जिसका नाम था मोहन। मोहन बहुत मेहनती और ईमानदार था, लेकिन गरीब था। उसकी एक पुरानी कुल्हाड़ी थी, जिससे वो जंगल में लकड़ियाँ काटता और गाँव में बेचता। एक दिन, वो जंगल के पास बहने वाली नदी के किनारे पेड़ काट रहा था। अचानक उसका हाथ फिसला, और उसकी कुल्हाड़ी छपाक से नदी में जा गिरी!
मोहन उदास होकर नदी के किनारे बैठ गया। "हाय, मेरी कुल्हाड़ी! अब मैं परिवार का पेट कैसे भरूँ?" वो रोने लगा। तभी, नदी का पानी चमकने लगा, और उसमें से एक जलपरी निकली। जलपरी की आँखें सितारों जैसी थीं, और उसने कहा, "मोहन, क्यों रो रहा है? क्या खोया तूने?"
मोहन ने सारी बात बताई। जलपरी मुस्कुराई और बोली, "रुक, मैं तेरी कुल्हाड़ी ढूंढती हूँ।" वो पानी में गायब हो गई और थोड़ी देर बाद एक चमचमाती सोने की कुल्हाड़ी लेकर लौटी। "क्या ये तेरी है?" उसने पूछा।
मोहन ने देखा, कुल्हाड़ी तो शानदार थी, लेकिन उसने ईमानदारी से कहा, "नहीं, ये मेरी नहीं। मेरी तो पुरानी लोहे की कुल्हाड़ी थी।"
जलपरी फिर गायब हुई और अब एक चाँदी की कुल्हाड़ी लाई। "तो ये होगी?" मोहन ने फिर सिर हिलाया, "नहीं, मेरी कुल्हाड़ी तो साधारण लोहे की थी।"
जलपरी तीसरी बार गई और इस बार मोहन की पुरानी, जंग लगी लोहे की कुल्हाड़ी लेकर आई। मोहन की आँखें चमक उठीं, "हाँ, यही है मेरी कुल्हाड़ी!"
जलपरी उसकी ईमानदारी से बहुत खुश हुई। उसने कहा, "मोहन, तेरी सच्चाई ने मेरा दिल जीत लिया। ये लो, ये तीनों कुल्हाड़ियाँ अब तेरी हैं! लेकिन सुन, ये सोने और चाँदी की कुल्हाड़ियाँ जादुई हैं। सोने की कुल्हाड़ी से काटा हुआ पेड़ रातोंरात फिर से उग जाता है, और चाँदी की कुल्हाड़ी से काटी लकड़ी अपने आप गाँव तक पहुँच जाती है।"
मोहन ने जलपरी को धन्यवाद दिया और कुल्हाड़ियाँ लेकर गाँव लौटा। उसने जादुई कुल्हाड़ियों का इस्तेमाल समझदारी से किया। सोने की कुल्हाड़ी से वो जंगल को हरा-भरा रखता, और चाँदी की कुल्हाड़ी से उसका काम आसान हो गया। उसकी पुरानी लोहे की कुल्हाड़ी को उसने हमेशा संभालकर रखा, ताकि वो अपनी मेहनत की कीमत न भूले।
देखते-देखते मोहन की मेहनत और ईमानदारी की वजह से गाँव में खुशहाली छा गई। लोग उसकी कहानी सुनकर कहते, "सच्चाई का जादू सबसे बड़ा जादू है!"
नैतिक: ईमानदारी और मेहनत का फल हमेशा मीठा होता है।
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